हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बहुत महत्व होता है। इसे श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है। पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान पितरों से संबंधित कार्य करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस अवधि में विधि-विधान से पितरों से जुड़े कार्य करने पर उनका आशीर्वाद मिलता है। पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से होती है और आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक रहता है। इस वर्ष 2 अक्टूबर 2024 को पितृ पक्ष का समापन होगा। 16 दिनों तक चलने वाला श्राद्ध पक्ष सर्वपितृ अमावस्या पर समाप्त होता है।
यदि किसी ने अपने पितरों की तिथि पर श्राद्ध नहीं किया हो, तो वह इस अमावस्या पर कर सकता है। यदि कोई सभी तिथियों पर श्राद्ध नहीं कर पाता, तो केवल अमावस्या पर सभी पितरों का श्राद्ध कर सकता है। यह दिन पितरों को प्रसन्न करने का एक शुभ मुहूर्त है, जो पूर्वजों की आत्माओं को शांति प्रदान करने के लिए पर्याप्त है। यदि किसी को अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि ज्ञात नहीं है, तो वह अमावस्या तिथि पर उनका श्राद्ध कर सकता है।
सर्वपितृ अमावस्या और सूर्य ग्रहण का सही समय:
ज्योतिष के अनुसार, इस साल का अंतिम सूर्य ग्रहण 2 अक्टूबर 2024 की रात 09:13 बजे से शुरू होगा और 3 अक्टूबर 2024 की भोर में 3:17 बजे समाप्त होगा। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार, सर्वपितृ अमावस्या पर सूर्य ग्रहण का कोई प्रभाव नहीं होगा, क्योंकि यह भारत में दिखाई नहीं देगा। इसलिए ग्रहण का सूतक काल भी नहीं माना जाएगा। इस तिथि पर आप अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म और अन्य पूजन अनुष्ठान कर सकते हैं।
तर्पण के दौरान इन बातों का रखें ध्यान (Tarpan Rules)
अगर आप पितरों का तर्पण कर रहे हैं, तो पवित्रता का विशेष ध्यान रखें। तामसिक भोजन और विवाद से दूर रहें। तर्पण दक्षिण दिशा की ओर मुख करके करें। तर्पण करते समय उंगली का उपयोग नहीं किया जाता, अंगूठे से जल अर्पित करने का विधान है। तर्पण करते समय अंगूठे में कुशा अवश्य धारण करें। कुशा, जल, गंगाजल, दूध और काले तिल से पितरों का ध्यान करते हुए तर्पण करें।
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। AstroGanit इस लेख में लिखी बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्रोतों, ज्योतिषियों, पंचांगों, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों और दंतकथाओं से एकत्र की गई है। पाठकों से अनुरोध है कि इसे अंतिम सत्य न मानें और अपने विवेक का प्रयोग करें।